हाल ही में सामने एक सर्वेक्षण ने “महिलाओं की सुरक्षा संबंधी इन्डेक्स” में मध्यप्रदेश को सबसे अधिक खराब स्थिति में पाया | टाटा स्ट्रेटजिक मेनेजमेंट समूह द्वारा 33 राज्यों में किये गए इस सर्वे में मध्यप्रदेश का स्थान 29वें नम्बर पर है | जिन सूचकों के आधार पर यह श्रेणीकरण किया गया वे हैं 6 वर्ष तक के बच्चों में बिगडता लिंगानुपात, महिलाओं के विरुद्ध हिंसा और दहेज ह्त्या | सर्वे के अनुसार तो कई मामलों में पंजाब और हरियाणा के सूचक मध्यप्रदेश से बेहतर हैं |
ज्ञात हो कि मध्यप्रदेश में हर रोज 8 महिलाओं के साथ बलात्कार होते हैं | हर तीसरे दिन एक सामूहिक बलात्कार होता है | बलात्कार और छेड़छाड़ के मामलों में मध्यप्रदेश पिछले 10 वर्षों से देश में पहले स्थान पर है | प्रदेश में हर साल हजारों महिलायें दहेज की बलि चढ़ रही हैं | प्रदेश में प्रति डेढ़ घंटे में एक नाबालिग युवती लापता होती है | मध्यप्रदेश बाल एवं महिला व्यापार के नए सुरक्षित क्षेत्र के रूप में उभर रहा है | घरों में होने वाली हिंसा में भी मध्यप्रदेश पिछले 10 सालों में नंबर 1 पर है | 2011की जनगणना के आंकड़ों ने हमें तब चौंकाया जबकि 6 वर्ष तक के बच्चों में लिंगानुपात 20 पाइंट गिरकर 212 सामने आया जो कि 2001 की जनगणना में 232 था |
यह बहुत ही शर्मनाक है कि आंकड़ों में उलझी सरकार महिलाओं के लिए घोषणाओं का पुलिंदा उतारकर महिलाओं की सुरक्षा के सब्जबाग दिखा रही है जबकि वास्तविक स्थिति तो इससे बहुत उलट है जो हर सर्वे में बयान हो रही है | ऐसी स्थिति में यह लाजिमी है कि अब महिलाओं पर होने वाली हिंसा के लिए खड़ा हुआ जाये | यह केवल सरकार की जिम्मेदारी ना बने बल्कि समाज भी इसे आत्मसात करे और इस पर अपनी प्रतिक्रिया दे | दिल्ली बलात्कार से उठे तूफ़ान ने वह जगह तो उपलब्ध कराई है जबकि देश भर में इन मुद्दों पर बात हुई है और महिलाओं के पक्ष में एक मुफीद वातावरण बना है |
यह हाल केवल देश का नहीं है बल्कि देश और दुनिया में भी यही हाल हैं | विश्व में लगभर 70 प्रतिशत महिलाएं किसी न किसी प्रकार की हिंसा का शिकार होती है | 15 से 44 वर्ष उम्र की जितनी महिलाएं मलेरिया, केंसर, हादसे इत्यादि से नहीं होती उससे कई ज्यादा मौते उन पर होने वाली हिंसा से होती है | इसलिए इस जरूरी मुद्दे पर महिलाओं पर होने वाली हिंसा के खात्मे के लिए इस बार सभी महिला-पुरुष अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर हाथ में हाथ डाले आवाज बुलंद करेंगे | यूनाइटेड नेशन ने भी 2013 के अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की थीम महिला हिंसा से बचाव के रूप में सामने रखी है| अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस हर साल 8 मार्च को महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक उपलब्धियों के लिये मनाया जाता है |
महिलाओं पर हो रही हिंसा के सम्बन्ध में 1993 में यूनाईटेड नेशन की सामान्य सभा में महिलाओं पर हो रही हिंसा को खत्म करने के लिए प्रस्ताव पारित किया गया था | इस प्रस्ताव में यह स्पष्ट है की महिलाओं पर होने वाली हिंसा से उनके मानवाधिकार का हनन होता है | इसी प्रकार महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव को खत्म करने के लिए 1973 में सीडा नामक एक समझौते हुआ जिस पर भारत ने 1980 में हस्तक्षर किये परन्तु 13 साल बाद इसका अनुसमर्थन किया | राष्ट्रीय महिला आयोग की वेबसाइट के अनुसार भारत में महिलाओं के लिए 48 कानून बनाए गए हैं जिसमे से कुछ विशेषकर महिलाओं के लिए और कुछ सामान्य है |
हम भी आज भोपाल में यह दिवस मनाने जा रहे हैं ताकि प्रदेश सरकार के साथ-साथ घर घर में यह सन्देश जाए कि महिलाओं पर होने वाली हिंसा अब बर्दाश्त के बाहर है और इस पर घर में,समाज में,पड़ोस में, प्रदेश में,सरकार में और देश के स्तर पर बात होना जरुरी है | इस दिवस पर सरकार को चाहिए कि वह पिछले 1 साल से महिला नीति विहीन प्रदेश में महिलाओं के सन्दर्भ में महिला नीति बनने कि तैयारों को जोर देने का संकल्प ले और अपनी प्रतिबद्धता दोहराए |