(हांगकांग, 19 जुलाई, 2012) एशियाई देशों में फैली व्यापक यातना और अनुचित व्यवहार को अविलम्ब समाप्त करने के उद्देश्य से कई एशियाई देशों के सांसद हांगकांग में मिलकर विचार विमर्श करेंगे. हांगकांग शहर के कावलून इलाके में आयोजित तीन दिवसीय यह बैठक 21 जुलाई से शुरू होगी.
यह बैठक ‘यातना और अन्य निर्मम, अमानवीय और अपमानजनक व्यवहार या सजा’ के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र संघ की संधि को एशिया में प्रभावी ढंग से लागू करवाने की दिशा में एक बड़ा कदम है. इस बैठक में बांग्लादेश, भारत, इंडोनेसिया, पाकिस्तान, फिलीपींस, और श्रीलंका के सांसद शामिल हो रहे हैं.
सांसदों के अलावा दक्षिण और दक्षिणपूर्व एशिया के कई महत्वपूर्ण मानवाधिकार कार्यकर्ता भी इस बैठक मेंशिरकत करेंगे. साथ ही इस बैठक में हांगकांग के कुछ प्रमुख मानवाधिकार कार्यकर्ता भी हिस्सा लेंगे. इस लिहाज से सिर्फ और सिर्फ यातना के सवाल पर आहूत की गयी यह बैठक मानवाधिकार आंदोलन की गौरवशाली परंपरा का एक महत्वपूर्ण और अभूतपूर्व कदम है.
इस बैठक का आयोजन एशियन अलायंस अगेंस्ट टॉर्चर एंड इलट्रीटमेंट (एएएटीआई) ने किया है. एएएटीआई की नींव एशियन ह्यूमन राइट्स कमीशन, हांगकांग (एएचआरसी) और रिसर्च एंड रिहैबिलेटेशन फॉर टॉर्चर विक्टिम्स, डेनमार्क द्वारा जुलाई 2011 में बुलाई गयी एक बैठक में डाली गयी थी. शीघ्र ही एएएटीआई यातना के खिलाफ लड़ रहे महत्वपूर्ण संगठन के बतौर उभर कर सामने आया था. यातना और अनुचित व्यवहार के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र संघ संधि के आधार पर क़ानून बनवाने के लिए एशियाई सरकारों पर दबाव डालना और उन्हें प्रभावी ढंग से लागू करवाना एएएटीआई का प्रमुख उद्देश्य है. मानवाधिकारों के उल्लंघन के सबसे बड़े रूपों में से एक यातना को खत्म करने के लिए यह एक जरूरी कार्यवाही है.
बैठक की शुरुआत एएचआरसी के अध्यक्ष जॉन क्लैंसी के दृष्टिकोण पत्र और आरसीटी के अंतर्राष्ट्रीय विभाग के परमुख डॉ जैन ओले हागेंसन के सैद्धांतिक पत्र से होगी. इन पर्चों की भूमिका कुल मिला कर बैठक के प्रतिभागियों को यातना और उससे निवारण के तरीकों को लेकर एक परिप्रेक्ष्य देने की होगी. विभिन्न देशों से आये सम्माननीय सांसद यातना और उसके खात्मे के विषय पर अपने पर्चे पढेंगे, जिसके बाद इन पर्चों पर गंभीर चर्चा की जायेगी.
डेनमार्क के पूर्व न्याय मंत्री प्रोफ़ेसर ओले एस्पर्सन ने बैठक के प्रतिभागियों को शुभकामना सन्देश भेजते हुए कहा कि यातना और अत्याचार का शिकार न बनाये जाने का अधिकार तब तक बेमानी है, जब तक यातना के शिकार लोगों को न्याय दिलाने का एक तंत्र विकसित न किया जाये . यातना का खात्मा तब तक नहीं किया जा सकेगा, जब तक लोगों को यातना देने वाले सराकरी अधिकारियों को सजा नहीं मिलती. उन्होंने यह भी कहा कि “यातना के प्रभावी निवाराण के साथ साथ अन्य सभी मानवाधिकार उल्लंघनों को रोकने की जिम्मेवारी अंततः सभी देशों की संसद और सरकारों की है.”